10 दिनों बाद गणपति तो अपने गांव की ओर चल पड़े हैं. लेकिन छोड़ गए हैं दस
नहीं सैकड़ों सवाल. 10 दिनों तक सबसे ज्यादा भक्त लालबाग के राजा
के दरबार में पहुंचते हैं, लेकिन वहां भक्तों के साथ कई बार ऐसा सलूक होता
है जिसने आस्था के नाम पर हो रहे आडंबर पर मुहर लगा दी है.
गणपति के भक्त मुताबिक, 'मंडल के कार्यकर्ताओं का बर्ताव लोगों से ठीक नहीं. इज्जत नहीं, मैनेजमेंट नहीं तो नहीं देखना अच्छा है. मगर तीन-तीन दिन तक लोग इधर राह देखते हैं लेकिन दर्शन नहीं मिलते. मंडल के कार्यकर्ता कभी-कभी मारते भी हैं. इस वजह से नहीं जाना अच्छा है.'
भक्तों की वजह से जहां भगवान पूजे जाते हैं वहां भक्तों के साथ बदसलूकी की आपको कई घटनाएं पढ़ने को मिल जाएंगी.
एक भक्त के मुताबिक, 'मंडल के कार्यकर्ता बाकी पैसे वालों को ऐसे दर्शन कराते हैं कि लगता है कि वही लाल बाग के राजा हैं और हम कोई नहीं हैं. सामान्य आदमी की वजह से लालबाग का राजा मशहूर हुए हैं.'
गणपति के एक और भक्त का कहना है, 'हम लाइन लगाके जाते हैं लेकिन दर्शन नहीं होते. दो मिनट भी खड़े नहीं हो सकते. पंडाल के कार्यकर्ता पहचान वाले को ही ज्यादा भेजते हैं.'
पंडालों में श्रद्धा के लिए गूंजने वाला संगीत भोंडेपन की तरफ जा रहा है. पूजा की भावना कई बार आडंबर में दबकर रह जाती है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या भक्ति में भोंडापन आ गया है? क्या पूजा प्रदूषित हो गई है? क्या आस्था के नाम पर भगवान का अपमान होता है?
गणपति के भक्त मुताबिक, 'मंडल के कार्यकर्ताओं का बर्ताव लोगों से ठीक नहीं. इज्जत नहीं, मैनेजमेंट नहीं तो नहीं देखना अच्छा है. मगर तीन-तीन दिन तक लोग इधर राह देखते हैं लेकिन दर्शन नहीं मिलते. मंडल के कार्यकर्ता कभी-कभी मारते भी हैं. इस वजह से नहीं जाना अच्छा है.'
भक्तों की वजह से जहां भगवान पूजे जाते हैं वहां भक्तों के साथ बदसलूकी की आपको कई घटनाएं पढ़ने को मिल जाएंगी.
एक भक्त के मुताबिक, 'मंडल के कार्यकर्ता बाकी पैसे वालों को ऐसे दर्शन कराते हैं कि लगता है कि वही लाल बाग के राजा हैं और हम कोई नहीं हैं. सामान्य आदमी की वजह से लालबाग का राजा मशहूर हुए हैं.'
गणपति के एक और भक्त का कहना है, 'हम लाइन लगाके जाते हैं लेकिन दर्शन नहीं होते. दो मिनट भी खड़े नहीं हो सकते. पंडाल के कार्यकर्ता पहचान वाले को ही ज्यादा भेजते हैं.'
पंडालों में श्रद्धा के लिए गूंजने वाला संगीत भोंडेपन की तरफ जा रहा है. पूजा की भावना कई बार आडंबर में दबकर रह जाती है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या भक्ति में भोंडापन आ गया है? क्या पूजा प्रदूषित हो गई है? क्या आस्था के नाम पर भगवान का अपमान होता है?